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अगर करते हैं नरक निवारण चतुर्दशी तो पहले जान लीजिए शाम की पूजा विधि, आरती

सनातन धर्म में मृत्यु के बाद कर्मानुसार स्वर्ग और नरक में जाने का विधान है। स्वर्ग में जहां सर्वसुख मिलता है वहीं नरक में कठोर कष्ट, यातना और दुख भोगना पड़ता है। ऐसे में भला कौन है जो नरक जाना चाहेगा। यदि आप अपने पाप कर्मो के बुरे प्रभाव से बचना चाहते हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की आशा करते है तो इसके लिए स्वर्णिम अवसर है। 10 फरवरी 2021,बुधवार को नरक निवारण चतुर्दशी है और इस दिन विधिविधान से शिवपूजन कर आप नरक से मुक्ति पाने की संभावना बढ़ जाती है

कैसे करें भगवान शिव की पूजा

1. सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करें।

2. साफ वस्त्र धारण करने के बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
3. भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करें।
4. पूजा के दौरान भोलेनाथ को बेलपत्र और बेर जरूर अर्पित करने चाहिए।
5. पूजा के बाद शिवजी की आरती उतारें।
6. आरती के बाद मंत्रों का जाप करना चाहिए।
7. शाम के समय बेर खाकर व्रत का पारण

माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। शास्त्रों के अनुसान इसी दिन हिमालयराज की पुत्री पार्वती का विवाह भगवान शिव के साथ तय हुआ था। इस तिथि से ठीक एक माह बाद फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह संपन्न हुआ। वैसे तो हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवपूजन के लिए श्रेष्ठ माना जाता है पर माघ और फाल्गुन मास की चतुर्दशी शिव को सबसे अधिक प्रिय होने से इन दोनों तिथियों को शिवरात्रि के समकक्ष माना जाता है। 

माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में जानी जाती है। इस तिथि पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश की पूजा की जाती है। इस दिन विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करें। उन्हें बिल्वपत्र के साथ बेर का फल भी अर्पित करें। यदि व्रत रखें तो बेर का फल खाकर व्रत खोलें। जरूरतमंदों को दान दें। अभी तक किए गए पापों का प्रायश्चित करें, मन-वचन-कर्म से किसी को कष्ट न पहुंचाने का संकल्प लें। ऐसे में आपके पाप कर्म का प्रभाव कम होगा, पुण्य बढ़ेगा तो नरक जाने की बजाए स्वर्ग में ही स्थान सुरक्षित हो सकेगा। वैसे सनातन धर्म अनुसार प्रत्येक,व्रत,पर्व त्योहारों को देखा जाय तो तो निश्चित रूप से धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण होता है जिसका लाभ पाना संभव है।




चतुर्दशी तिथि आरंभ मंगलवार रात्रि 01 बजकर 30 मिनट के उपरांत और त्रयोदशी तिथि समापन बुधवार को रात्रि 12:30 तक। वैसे अपने अपने क्षेत्रीय पंचांग अनुसार समय सारणी में अंतर हो सकता है। आप सभी का कल्याण हो 

क्यों है आज का दिन खास

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माघ मास की चतुर्दशी को ही शिव-पार्वती का विवाह तय हुआ था। जबकि ठीक एक महीने बाद यानी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं।
  
आरती

ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥

ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा★★

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।।...

शिव तांडव स्तोत्र

ये वो शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् है जिसे पढ़ कर रावण ने महादेव को प्रसन्न कर लिया था

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वय
चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावक
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम || २||

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे |
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे( क्वचिच्चिदंबरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि || ३||

लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वध मुखे |
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि || ४|

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः |
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः || ५||


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