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saptashati path vidhi_ दुर्गा सप्तशती पाठ की सही विधि, इस तरह पाठ करने से होगी कामना पूरी

 saptashati path vidhi navratri 2021_दुर्गा सप्तशती पाठ कलियुग में विशेष लाभकारी बताया गया है. लोक व्यवहार में यह प्रत्यक्ष देखने को भी मिलता है. कहा भी गया है- "कलौ चण्डी महेश्वरौ", अर्थात् कलियुग में भगवती दुर्गा और शिव की उपासना सर्वोपरि है. उपासना के क्षेत्र में दुर्गा सप्तशती का विशिष्ट स्थान है. चण्डीपाठ, देवी माहात्म्य और सप्तशतीस्तोत्र के नाम से इसकी ख्याति भी है. दुर्गा सप्तशती के शुद्ध व विधिवत् पाठ से सभी प्रकार के कष्ट और बधाओं का निवारण होता है. इसके साथ-साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि भी होती है. यहाँ हम आपको दुर्गा सप्तशती पाठ के लाभ, दुर्गा सप्तशती पाठ-विधि  दुर्गा सप्तशती के प्रकार के बारे में बता रहे हैं.   

दुर्गा सप्तशती पाठ के लाभ (durga saptashati path ke labh) 

रूद्रयामलतंत्र में कहा गया है- "यत्रास्ति भोगो न च तत्र मोक्षो यत्रास्ति मोक्षो नहि तत्र भोगः, श्रीसुन्दरीसेवन तत्पराणां भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव". इस श्लोक का भावार्थ है- शुद्ध अंतःकरण और शुद्धतापूर्वक दुर्गा सप्तशती का पाठ करनें से चारों पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) की प्राप्ति होती है. इसके अलावा कात्यायनी तंत्र में कहा गया है- "अथवा बहुनोक्तेन किमन्येन वरायने, चण्ड्याः शतावृत्तिपाठात्सर्वाः सिद्धयन्ति सिद्धयः". जो कोई दुर्गा सप्तशती का विधिवत् सौ आवृत्ति पाठ करता है या करवाता है वह सभी प्रकार के बंधनो से मुक्त होकर सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त करता है. 



दुर्गा सप्तशती पाठ विधि (durga saptashati path vidhi)

  • दुर्गा सप्तशती पाठ करने से पहले शौच आदि से निवृत हो जाएं. 
  • शुद्ध स्थान व आसन पर बैठकर शुद्धिकरण करें. 
  • शुद्धिकरण के बाद पाठ के लिए संकल्प करें. 
  • संकल्प के पश्चात् गणेशादि देवता का आवाह्न और पूजन करें. 
  • इसके बाद पाठ आरंभ करें. 
  • पाठ के लिए दुर्गा सप्तशती पुस्तक को लकड़ी के बने आसन पर रखकर भगवती का ध्यान कर स्पष्ट, सुमधुर और शांतचित से शुद्ध-शुद्ध पाठ करना चाहिए. 
  • पाठ करते समय सिर नहीं हिलाना चाहिए.
  • हाथ में पुस्तक रखकर पाठ करने से केवल आधा फल मिलता है. 
  • पाठ पूरा होने पर 'श्रीदुर्गार्पणमस्तु' कहें.
  • पाठ अथवा जप की सिद्धि के लिए शरीर, स्थान, आसन, मंत्र, द्रव्यादि शुद्धि अपेक्षित है. ऐसा कुलार्णवतंत्र में कहा गया है. इसलिए इसका ध्यान रखना आवश्यक है. 

दुर्गा सप्तशती पाठ के प्रकार (kinds of durga saptashati path)

सामान्य पाठ- प्रत्येक आवृति में 1-13 अध्याय के अतिरिक्त अर्गला आदि पाठ प्रारंभ और अंत में एक बार ही होता है. इसे सामान्य पाठ कहा गया है. 

सम्पुट पाठ- दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक मंत्र के पहले और बाद में संपुट मंत्र से पाठ संपुट पाठ कहलाता है. संपुट मंत्र दुर्गा सप्तशती का होना आवश्यक है.

सृष्टिक्रम पाठ- क्रम से अर्गला, कीलक, कवच, शापोद्धार, शतनामस्तोत्र, नवार्णविधि, सप्तशतीन्यास, 1-13 अध्याय तक पाठ, सप्तशतीन्यास, नवार्णविधि और ऋगवेदोक्तदेवीसूक्त से पाठ एक आवृत्ति कहलाता है. 

स्थितिक्रम पाठ- पाँच से तेरह अध्याय तक पाठ कर पुनः 1-4 अध्याय तक पाठ स्थितिक्रम पाठ कहलाता है. 

संहारक्रम पाठ- "एवं देव्या वरंलब्ध्वा" से प्रारंभ कर प्रथम अध्याय के "मार्कण्डेय उवाच" तक विपरीत क्रम में पाठ करना संहारक्रम पाठ कहा गया है. 

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दुर्गा सप्तशती के अन्य प्रकार (Popolar durga saptashati path) 

  1. पहले दिन प्रथम, दूसरे दिन 2 से 4 और तीसरे दिन 5 से अंतिम अध्याय तक पाठ का भी प्रचलन में है. 
  2. पहले दिन प्रथम अध्याय का पाठ, दूसरे दिन द्वतीय-तृतीय अध्याय, तीसरे दिन चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन पंचम से अष्टम अध्याय तक पाठ, पांचवें दिन नवम् और दशम्, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय और सातवें दिन 12वां और 13वां अध्याय के पाठ का भी विधान है.
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