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maa durga ki utpatti_ माँ दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई? ऐसे आयी भगवती के पास अद्भुत शक्तियाँ

 maa durga ki utpatti_ शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक होती है. नवरात्रि 2021 में सात से 14 अक्टूबर तक है. नौ शक्तियों से युक्त होने के कारण इसे नवरात्रि कहा जाता है. नवरात्रि में माँ दुर्गा की विशेष आराधना की जाती है. परंतु, क्या आप जानते हैं कि देवी दुर्गा की आठों भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र कहाँ से आए? माँ दुर्गा के पास अद्भुत शक्ति कैसे आई? साथ ही माँ दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई? 

maa durga ki utpatti_माँ दुर्गा की उत्पत्ति_ दुर्गम नाम का राक्षस ब्रह्मी जी से वरदान पाकर महाबली हो गया था. उसने चारों वेदों को अपने हाथ में ले लिया. वेदों के अदृश्य हो जाने से सभी धार्मिक कार्य नष्ट हो गए. जिसके परिणमस्वरुप पृथ्वी पर सौ वर्षों के लिए वर्षा बन्द हो गई. तीनों लोक में हहाकार मच गया. भू-मण्डल के जीव भूख-प्यास से व्याकुल होकर मरने लगे. ये सब देखकर दुर्गम बहुत खुश था. परंतु, उसे इतने से भी चैन नहीं था. उसने अमरावती पर भी अधिकार कर लिया. देवता उसके डर से भाग गए, लेकिन जाते कहाँ ? फिर उन्हें महेश्वरी देवी का स्मरण आया. 

देवतागण हिमालय पर्वत पर स्थित महेश्वरी योगमाया की शरण में पहुंचे. देवता कहने लगे- 'महामये! अपनी प्रजा की रक्षा करो. माँ ! जैसे आपने शुम्भ-निशुम्भ, धुम्राक्ष, चण्ड-मुण्ड, मधु-कैटभ और महिषासुर का वध कर संसार की रक्षा की है. साथ ही देवताओं का कल्याण किया है. उसी प्रकार इस दुष्ट दुर्गम से हम सब की रक्षा करें, नहीं तो यह समस्त ब्रह्माण्ड नष्ट हो जाएगा. हे माहेश्वरी! हमें दर्शन दें. 

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अपने पुत्रों की हालत देखकर करुणामयी देवी तत्क्षण प्रकट हो गईं. उस समय तीनों लोकों की ऐसी स्थिति देखकर माता का आँखों में आँसू छलछला गए. करुणार्द्र हृदया भगवती भुवनेश्वरी प्रजा का कष्ट देखकर नौ दिनों तक रोती रहीं. माता की करुणा देखकर भगवान व्यास ने कहा-"न शताक्षी समा काचिद्, दयालुर्भुवि देवता दृश्ट्वारूदत् प्रजास्तप्ता या नवाहं महेश्वरी". 

देवी शताक्षी के सैकड़ों नेत्रों से आँसू की जलधाराएं प्रवाहित हुईं. जिससे नौ दिनों तक त्रिलोक में घनघोर वर्षा होती रही. वर्षा के जल से पृथ्वी के सारे प्राणी तृप्त हो गए. उस समय भगवती ने अनेक प्रकार के फल और शाक (भोज्य वस्तुएं) देवताओं व अन्य लोगों को खाने के लिए दीं. इसलिए देवी 'शाकम्भरी' के नाम से विख्यात हुईं. देवी शाकम्भरी की कृपा से देवता सहित समस्त ब्रह्माण्ड के प्राणी प्रसन्न हो गए. फिर देवी ने पूछा- "देवताओं अब तुम्हारा कौन सा कार्य सिद्ध करूं?". तब देवताओं ने कहा- देवी! कृपा करके दुर्गमासुर के द्वारा छीने गए 'वेद' लाकर हमें दे दीजिए. देवी ने तथास्तु कहकर देवताओं को विदा की. 

maa durga ki utpatti
माँ दुर्गा
इधर दुर्गमासुर ने अपने दूतों से स्थिति को समझ लिया. जिसके बाद उसने सेना लेकर स्वर्ग, पृथ्वी और अंतरिक्ष तीनों लोकों को घेर लिया. फिर से संकट में पड़े देवताओं ने माता से रक्षा की प्रार्थना की. शीघ्र ही भगवती ने अपने दिव्यतेज से तीनों लोकों को सुरक्षा कवच में डाल दिया. जिससे वे सुरक्षित हो गए. देवी सुरक्षा कवच के बाहर आकर दुर्गम के सामने खड़ी हो गईं. दोनों में युद्ध ठन गया. 

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इसी बीच देवी के शरीर से काली आदि दसमहाविद्याएं अस्त्र-शस्त्र के साथ उत्पन्न हुईं. उनके साथ असुरों का भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध दस दिनों तक चलता रहा. असुर सेना का विनाश देखकर 11वें दिन स्वयं दुर्गम सामने आ गया. फिर देवी पर बाणों की वर्षा करने लगा. देवी ने भी रथ पर सवार होकर बाणों को कौशल दिखना शुरू किया. युद्ध भयंकर हुआ, लेकिन भगवती के सामने वह टिक न सका. 

देवी ने एकसाथ 15 बाण छोड़े. चार बाणों से रथ के चार घोड़े गिर पड़े. एक बाण ने सारथी का प्राण ले लिया. दो-दो बाण क्रमशः उसकी आँखों और भुजाओं को नष्ट कर दिए. एक बाण ने रथ की ध्वजा को काट डाला. बचे हुए पाँच बाण दुर्गमासुर की छाती को फाड़ डाले. जिसके बाद दुर्गम अपने प्राणों से हाथ धो बैठा. इस प्रकार देवी भुवनेश्वरी ने दुर्गमासुर का वध किया. इसलिए वे 'दुर्गा' नाम से प्रसिद्ध हो गईं. दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय में वर्णन है- "तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम्, दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति".

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