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chauth chandra 2021_ चौठचंद्र कब है? जानिए मंत्र, पूजा-विधि और कथा

 chauth chandra_चौठचंद्र का महत्व मिथिला और मैथिल में खास है. मिथिला से वास्ता रखने वाले लोग जहां भी हैं, इस पर्व को विशेष रूप से मनाते हैं. मिथिला का यह पावन पर्व भाद्रपद (भादो) मास में पड़ता है. भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को चौठचंद्र का व्रत रखा जाता है. चौठचंद्र संध्याकालीन पर्व है. ऐसा इसलिए कि इस पर्व में चन्द्रोदय काल में चंद्रमा की पूजा की जाती है. ऐसे में चंद्रोदय के समय चौठ तिथि में ही चौठचंद्र पूजा करना अच्छा माना गया है. आगे हम आपको चौठचंद्र कब है, चौठचंद्र का मंत्र क्या है, चौठचंद्र की पूजा की विधि क्या है. इसके बारे में बता रहे हैं.    

chauth chandra 2021_ चौठचंद्र कब है?  

chauth chandra 2021_ चौठचंद्र कब है_ चौठचंद्र भाद्रपद (भादो) मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि में मनाया जाता है. चौठचंद्र 2021 में 10 सितंबर (chauth chandra 2021, september 10) शुक्रवार को पड़ रहा है. मैथिल परंपरा के मुताबिक चौठचंद्र (chauth chandra 2021) शाम का पर्व है. चौठचंद्र के दिन शाम के समय चंद्रमा के उदय काल में उनकी पूजा की जाती है, अर्घ्य दिया जाता है. चन्द्रोदय के समय चौठ तिथि रहना आवश्यक माना गया है. अगर चन्द्रोदय काल में चौठ न रहे तो ऐसे में जिस दिन सूर्योदय काम में चौठ तिथि रहेगी, उस दिन चौठचंद्र पूजा (chauth chandra puja) करनी चाहिए.  

chauth chandra mantra_ चौठचंद्र मंत्र 

सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।

सुकुमारक मा रोदीः तव ह्योष स्यमन्तकः।।

नमः शुभ्रांशवे तुभ्यं द्वियराजाय ते नमः। 

रोहिणीपतये तुभ्यं लक्ष्मी भ्राते नमोस्तुते।।

दिव्य शंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्।

नमामि शशिनं भक्त्या शम्भोर्मुकुटभूषणम्।।

chauth chandra 2021


chauth chandra puja vidhi_ चौठचंद्र पूजा-विधि

आमतौर से चौठचंद्र पर चंद्रमा की पूजा महिला वर्ग करती हैं. हालांकि कहीं-कहीं पुरुष भी करते हैं. निराहार रहकर शाम को चन्द्रोदय के वक्त पश्चिम की ओर मुंह करके शुद्ध आसन पर बैठें. इसके बाद पवित्र होकर संकल्प करें. संकल्प के बाद केला के पत्ते पर चंद्रमा की मूर्ती का अरिपन बनाएं, क्योंकि इसी पर पूजा की जाती है. अब बने हुए एक-एक अरिपन पर पकवान युक्त डाली रखें. 

chauth chandra puja samagri_चौठचंद्र पूजा-सामग्री (पूजन विधि हेतु)  

  1. फूल 
  2. विल्वपत्र 
  3. दूर्वादल 
  4. तिल 
  5. अक्षत 
  6. रोली 
  7. चंदन 
  8. कुश 
  9. तुलसी पत्र 
  10. केला का पत्ता 
  11. गाय का दूध 

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दही के पात्र भी अरिपन पर ही रखें. केला का घौर रखा जाता है. बिना नमक के शाक-सब्जी भी पूजा स्थान पर रखा जाता है. कलश पर दीप जलाकर रखा जाता है. धूप-दीप शंख आदि सामग्री जुटा लें. इतना करने के बाद गणपति आदि पंचदेवता और गौरी की पूजा करें. इसके बाद रोहिणी सहित चंद्रमा की पूजा करें. 


विधवास्त्री गौरी की पूजा के बदले भगवान विष्णु की पूजा कर चंद्रमा की पूजा करें. पूजा में उजले वस्त्र, उजले फूल और उजले जनेऊ का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके बाद चौठचंद्र कथा सुनें. पूजा के बाद दही का पात्र लेकर "दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्, नमामि शशिनं भक्त्या शम्भोर्मुकुटभूषणम्" मंत्र पढ़ें. इसके बाद  पकवान वाली डाली, फल इत्यादि को बारी-बारी से लेकर चंद्रमा का दर्शन करें. चंद्रमा-दर्शन के समय "सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः, सुकुमारक मा रोदीः तव ह्योष स्यमन्तकः" यह मंत्र पढ़ना शुभ माना गया है. अंत में विसर्जन और ब्राह्मण  भोजन कराएं और करें.


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