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anant chaturdashi story_ अनंत चतुर्दशी की स्टोरी जिसे श्रीकृष्ण ने खुद सुनाया अर्जुन को

 anant chaturdashi story_अनंत चतुर्दशी भादो मास के शुक्लपक्ष की 14वीं तिथि को मनाया जाता है. 2021 में अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर, यानि आज है. अनंत चतुर्दशी पर भगवान अनंत की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यता है कि अनंत भगवान की पूजा से समस्त पापों का नाश होता है. साथ ही हर प्रकार के मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद मिलता है. अनंत चतुर्दशी की स्टोरी की चर्चा स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और ब्रह्मपुराण में की गई है. आगे हम आपको अनंत चतुर्दशी स्टोरी_anant chaturdashi story के बारे में बता रहे हैं जो कि प्रमाणिक है. 

anant chaturdashi story_ अनंत चतुर्दशी स्टोरी 

अनंत चतुर्दशी स्टोरी_anant chaturdashi story के बारे में भविष्य पुराण के उत्तर पर्व के 95वें अध्याय में एक प्रसंग आया है. युधिष्ठिर जब जूए में हार गए तो उन्हें 12 वर्ष का वनवास मिला. जब वे वनवास-कष्ट को भोग रहे थे, संयोगवश श्रीकृष्ण उसी वक्त वहां पहुंचे. युधिष्ठर के पूछने पर उन्होंने कहा- राजन, सभी पापों का नाश करने वाला, कल्याणकारक और समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाला अनंत चतुर्दशी नाम का एक व्रत है. इस पर युधिष्ठर ने कहा भगवन् ! आप अनंत चतुर्दशी की स्टोरी के बारे में विस्तार से बताएं.

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा- युधिष्ठिर इस चतुर्दशी की स्टोरी (anant chaturdashi story) के बारे में एक प्राचीन आख्यान इस प्रकार है. सतयुग में वशिष्ठ गोत्रीय सुमन्तु नाम के एक ब्राह्मण थे. उनका महर्षि भृगु की पुत्री दीक्षा से विवाह हुआ. उन्हें सभी गुणों से संपन्न एक कन्या हुई. जिसका नाम शीला रखा गया. कुछ समय बाद उसकी माता का स्वर्गवास हो गया. सुमन्तु ने कर्कशी नामक कन्या से दूसरा विवाह कर लिया. 

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कर्कशी अपने नाम के अनुरूप थी. शीला अपने पिता के घर में रहती हुई दीवाल, देहली, स्तंभ आदि पर स्वास्तिक, पद्म, शंख इत्यादि भगवान् विष्णु के चिह्नों को अंकित कर उसकी पूजा करती रहती थी. सुमन्तु को शीला के विवाह की चिंता होने लगी. उन्होंने शीला का विवाह कौण्डिल्य मुनि के साथ कर दिया. विवाह के बाद सुमन्तु ने अपनी पत्नी से कहा- "दामाद के लिए पारितोषित रूप में दहेज द्रव्य देना चाहिए". इतना सुनकर कर्कशा क्रोधित हो गई और उसने घर में बने मंडप को उखाड़ फेंका. साथ ही भोजन से बचे हुए कुछ अन्न सुमन्तु को देते हुए बोली- "चले जाओ". फिर दरवाजा बंद कर लिया. 

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कौण्डिल्य भी शीला को साथ लेकर बैलगाड़ी से धीरे-धीरे वहाँ से निकल पड़े. दोपहर के वक्त एक नदी के किनारे पहुंचे. जहाँ शीला देखती है कि कुछ स्त्रियाँ भक्तिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा कर रहीं हैं. वह दिन चतुर्दशी का था. शीला ने उन स्त्रियों के पास जाकर पूछा- आपलोग यहाँ किसकी पूजा कर रहीं हैं? इस व्रत का नाम क्या है? इस पर वे स्त्रियाँ बोलीं- "यह व्रत अनंत चतुर्दशी (anant chaturdashi) के नाम से प्रसिद्ध है". शीला बोली- "मैं भी इस व्रत को करूंगी. इस व्रत का विधान क्या है? किस देवता की इस व्रत में पूजा की जाती है और दान में क्या किया जाता है? आपलोग बताएं." 

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इस पर स्त्रियों ने कहा- एक थाली पकवान का नैवेद्य बनाकर नदी तट पर जाएं. वहाँ स्नान कर स्वच्छ स्थान पर अनंन्तस्वरूप भगवान विष्णु की गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि से पूजा करें और कथा सुनें. उन्हें नैवेद्य अर्पित करें. नैवेद्य का आधा भाग ब्राह्मण को देकर बचा हुआ स्वयं ग्रहण के लिए रखें. भगवान अनंत के सामने 14 गाँठ वाला एक डोरक लेकर उसे कुम्कुम आदि से अर्पित करें. भगवान को वह डोरा अर्पित कर पुरुष दाहिने हाथ में और स्त्री बाँए हाथ में बाँध लें. 

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